Thursday, September 2, 2010

भौगोलीकरण का जवाब : कुटुंबक्कम

तमिलनाडु़ की राजधानी चेन्नई से करीब 40 किलोमीटर दूर बसा गांव कुटुंबकम पिछले 15 साल से ग्राम स्वराज के रास्ते पर चल रहा है। 15 साल पहले तक यहां हर वो बुराई थी जो देश के किसी भी अन्य गांव में देखी जा सकती है। शराब पीना, शराब पीकर घर में मारपीट, गांव में आपस में झगड़े, छुआछूत, गन्दगी आदि आदि। गांव में 50 फीसदी आबादी दलितों की है लेकिन जातियों के बंटवारे इतने गहरे थे कि नीची कही जाने वाली जातियों को कुछ रास्तों पर आने, कुओं से पानी लेने आदि तक की अनुमति नहीं थी। और इन सबके चलते एक बरबाद गांव। हर तरफ बेरोज़गारी और गरीबी की मार।
लेकिन आज इस गांव में आपस के झगड़े लगभग मिट गए हैं। जातियों की दीवारें अब काफी छोटी हो गई हैं। गांव में नए बने घरों में अब वही परिवार एकदम पड़ोस में रह रहे हैं जो कल तक नीची और ऊंची जाति के झगड़े में उलझे थे। यहां तक कि गांव में अन्तरजातीय विवाह भी हुए हैं। शराब पीकर घर में मारपीट करने का चलन अब थम चुका है…


सवाल ये उठता है कि ये हुआ कैसे? प्रथम दृष्टिय इसका श्रेय गांव के पूर्व सरपंच इलांगो रंगास्वामी को दिया जा सकता है। और यह गलत भी नहीं है। इलांगो एक सफल वैज्ञानिक थे लेकिन 1996 में अच्छी खासी नौकरी छोड़कर अपने गांव में पंचायत का चुनाव लड़े और जीत भी गए। 15 साल पहले के कुटुंबकम गांव का आज के कुटुंबकम में परिवर्तन यहीं से शुरू होता है। लेकिन अगर इसे गांव के एक होनहार नौजवान के व्यक्तित्व का चमत्कार और उसकी ऊंची पढ़ाई लिखाई को इसका आधर मानकर छोड़ दिया जाए तो शायद इलांगो के 15 साल व्यर्थ हो जाएंगे। और देश के हर गांव में लोग यही दुआ करते रह जाएंगे कि ‘काश! कोई इलांगो जैसा कोई होनहार हमारे गांव में भी पैदा हो जाए।’ तो कुटुंबक्कम में आए बदलाव को हमें किसी व्यक्ति से ऊपर उठकर इस रूप में समझना पड़ेगा कि यहां क्या-क्या हुआ और कैसे हुआ?
शुरुआत तो 1996 में इलांगो के सरपंच बनने से हुई। इलांगो एक दलित परिवार से हैं और बचपन में गांव में झेले भेदभाव ने उनके मन में गहरा असर छोड़ा था। वे अपने गांव एक सपना लेकर आए थे। लेकिन एक ऐसे गांव में जहां जात पात, शराब, गरीबी, बेरोज़गारी जैसी बीमारियों ने लोगों को हर तरह से तोड़ कर रखा हो, वहां लोगों को विकास का सपना दिखाना मुश्किल काम है। फिर भी – इलांगो ने गांव के ऊपर अपना सपना नहीं लादा। गांववालों के साथ बैठकर चर्चा से शुरु आत की। इलांगो की ताकत थी कि उन्होंने पंचायत चुनाव जीतने के लिए न पैसा खर्च किया था न शराब बांटी थी। धीरे-धीरे लोग ग्राम सभा की बैठकों में आने के लिए प्रेरित हुए।
इलांगो ने गांव के विकास के लिए एक पंचवर्षीय योजना बनाई और इस पर गांव में जमकर चर्चा हुई। यह चर्चा एक बैठक तक सीमित नहीं थी बल्कि वार्ड स्तर पर भी इसके लिए बैठकें आयोजित की गईं। इन बैठकों में आए सुझावों के आधर पर पंचवर्षीय योजना में सुधार किए गए और इस पर काम शुरू हुआ। पंचायत के कामकाज में पूरी पारदर्शिता और हर काम में के बारे में खुली बैठकों में चर्चा से लोग पंचायत के कामकाज में दिलचस्पी लेने लगे।
लोगों के रवैये के समानान्तर चुनौती थी अधिकारियों का रवैया। गांव के सरकारी कर्मचारियों से लेकर ज़िले तक के अधिकारियों को गांव के किसी काम से कमीशन नहीं मिला तो वे कुपित होने लगे। नतीज़ा था इलांगो को कागज़ों में घेरने की कोशिश की गई। उन पर पंचायत का काम योजना के हिसाब से न कराने के आरोप लगे। गौरतलब बात यह थी कि इलांगो इन सब मुद्दों पर ग्राम सभा की खुली बैठकों में चर्चा करते थे।
अधिकारियों को रिश्वत न खिलाने का परिणाम यह हुआ कि एक मामले में इलांगो को सस्पेण्ड कर दिया गया। मामला यह था के गांव में एक नाली का निर्माण तय हुआ सरकार से इसके लिए 4 लाख 20 हज़ार रुपए का बजट मिला। गांव वालों ने पास की एक फैक्ट्री से बचे गे्रनाईट पत्थरों को इस्तेमाल कर यह काम मात्र 2 लाख 20 हज़ार रुपए में पूरा कर लिया। जबकि सरकारी योजना के मुताबिक ये पत्थर पड़ोस के एक स्थान से मंगाए जाने थे। इससे सरकारी पैसा भी बचा और काम भी जल्दी हो गया। लेकिन अधिकारियों ने इसे भ्रष्टाचार माना और इलांगो को सस्पेण्ड कर दिया। यहां पर इलांगो का साथ दिया गाँधी के प्रयोगों ने। उन्होंने इसका शान्ति से विरोध् किया।  नतीज़ा मुख्यमंत्री के आदेश पर गांव में ग्राम सभा की बैठक हुई और यहां 2000 लोगों की भीड़ ने इलांगो के पक्ष में वोट दिया। इसके बाद फिर से चुनाव हुए और इलांगो वापस अपने गांव के सरपंच बन गए।
इस घटना के दौरान आई एकता ने गांव में जातियों की दीवार को नीचा किया और तब एक और सामाजिक प्रयोग की ज़मीन तैयार हुई। मुख्यमंत्री से मिलकर इलांगो ने गरीब परिवारों के लिए एक ऐसी कॉलोनी बनाने का प्रस्ताव रखा जिसमें एक एक घर दलित और गैर दलित परिवारों को एक एक करके दिए जाएंगे। और यह कालोनी सफलता पूर्वक बन गई और आज लोग इसमें अभूतपूर्व मेल मिलाप से रह रहे हैं। ये मकान बेहद सस्ती तकनीक से, सौर ऊर्जा के उपयोग के हिसाब से बनाए गए हैं।
लेकिन गांव में बदलाव का एक सबसे उदाहरण है शराब की खपत में कमी। लोगों का शराब पीना और फिर पत्नी बच्चों के साथ मारपीट करना आम बात थी और शायद इस बुराई ने इलांगो गांव लौटने के लिए सबसे ज्यादा प्रेरित किया था। सरपंच बनने के बाद इलांगो ने इसके लिए पुलिस और मीडिया का सहारा तो लिया ही, नुक्कड़ नाटकों का इस्तेमाल भी किया। चेन्नई के लोयोला कालेज के छात्रों की नुक्कड़ नाटक की टीम ने गांव में शराब के नुकसान पर कई नाट्कों का मंचन किया। धीरे-धीरे कई साल की मेहनत से लोगों को लगा के वे गलत कर रहे हैं। और तब यह बुराई छूटी।
इसके अलावा, सड़कों का निर्माण, गरीबों के लिए घर, रोज़गार के अन्य सम्मानित विकल्प आदि ऐसे काम हैं जो अब इलांगो ही नहीं गांव वालों का सपना बन गया है। और इस पर काम भी हो रहा है। गांव में 60 फीसदी महिलाएं पढ़ी लिखी हैं। सारे बच्चे स्कूल जाते हैं इसलिए बालमजदूरी जैसी बुराईयों का खात्मा हुआ है। बीते 15 साल में और भी बहुत से ऐसे काम है जिनकी सफलता की सूची बनाई जा सकती है लेकिन अब इस गांव के लोग इलांगो के साथ मिलकर एक और सपना दे रहे हैं। वह है आर्थिक अत्मनिर्भरता का सपना। इस सपने का आधार है यह विश्वास कि 10-15 किलोमीटर क्षेत्र के इलाके के गांवों में उस इलाके के अन्दर रहने वाले तमाम लोगों की ज़रूरतें पूरी हो सकती हैं। खाने पीने की ज़रूरतों से लेकर जीने के लिए ज़रूरी हर आवश्यकता तक। अब इलांगो और उनकी टीम लगी है इस सपने को साकार करने में। आखिर कुटुंबक्कम को आत्मनिर्भर और स्वराज में जीता गांव बनाने के लिए यह एक आवश्यकता जो है।

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