Monday, December 14, 2009

दिल्ली में स्वराज अभियान

दिल्ली में नगर निगम के दो पार्षदों ने अपने अपने वार्डों में एक अभूतपूर्व प्रयोग शुरू किया है। स्वराज अभियान के साथ मिलकर इन दोनों पार्षदों ने अपने वार्ड को `स्वराज` यानि लोगों का सीधा राज का मॉडल वार्ड बनाना शुरू किया है। इसके तहत दोनों वार्ड पार्षद अपने अपने मोहल्ले में मोहल्ला सभाएं कर, जनता से पूछते हैं कि उनके इलाके में नगर निगम के फंड कहां इस्तेमाल हों, कर्मचारी क्या काम करें तथा गरीबों के लिए बनी योजनाओं का लाभ किस किसको मिले।

मोहल्ला सभा, (सोनिया विहार, दिल्ली)

इन बैठकों के काफी सकारात्मक नतीज़े आ रहे हैं। एक तरफ तो इनके ज़रिए सीमित संसाधनों को उन कामों में लगाया जा रहा है जो जनता की प्राथमिकता में हैं, दूसरी तरफ इन बैठको का आयोजन सम्बंधित पार्षदों के बड़े पैमाने पर राजनीतिक फायदा पहुंचा रहा है। क्योंकि इस प्रक्रिया में एक पार्षद अपने प्रत्येक वोटर को महीने में कम से कम दो बार पत्रा लिखता है, एक बार तो उन्हें मोहल्ला सभा में निमंत्रित करने के लिए और दूसरी बार उन्हें बैठक के फैसलों से अवगत करवाने के लिए। ये पत्र तथा खुली बैठकें पार्षदों को जनता के निरंतर संपर्क में रखती हैं।

दोनों ही वार्डों में जनता इस पूरी प्रक्रिया की तारीफ कर रही है। दिल्ली के उपराज्यपाल ने भी समाचार पत्रों में इस प्रक्रिया के बारे में छपी खबरों से स्वत: संज्ञान लेते हुए दोनों पार्षदों को बधाई दी है। और नगय आयुक्त को लिखा है कि अन्य वार्डों में भी इस तरह की कोशिश करें।

मोहल्ला सभा की बैठक कैसे होती हैं?

  • एक नगर निगम वार्ड को 10 हिस्सों बांट दिया जाता है। प्रत्येक भाग को मोहल्ला कहा जाता है। एक वार्ड में करीब 40,000 वोटर होते हैं। इस तरह एक मोहल्ले में करीब 4000 वोटर होते हैं अर्थात करीब 1500 परिवार। एक मोहल्ले का प्रत्येक वोटर मोहल्ला सभा का सदस्य होता है। मोहल्ला सभा हर महीने एक बार बैठक करती है।
  • मोहल्ला सभा के पहले प्रत्येक घर में बैठक के दिन, स्थान तथा समय के बारे में लिखित सूचना दी जाती है। यह सूचना पार्षद की ओर से वोटर के नाम लिखी एक चिट्ठी के रूप में होती है। बैठक में नगर निगम के स्थानीय अधिकारियों को भी बुलाया जाता है।
  • बैठक में कई लोग एक साथ न बोलें इसके लिए लोगों को एक खाली पर्ची दे दी जाती है। इस पर वे अपना नाम, पता तथा उस मुद्दे के बारे में लिखकर देते हैं जिसके बारे में उन्हें बात रखनी है। इन पर्चियों के आधार पर एक एक व्यक्ति को बोलने के लिए बुलाया जाता है।
  • लोग अपनी समस्याएं रखते हैं। सभी लोग मिलकर उन पर चर्चा करते हैं, सुझाव देते हैं और जो कार्य वे अपने इलाके में चाहते हैं उसके बारे में निर्णय लेते हैं। आवश्यकता पड़ने पर कर्मचारी भी अपनी बात रखते हैं। यदि मामला कर्मचारियों की लापरवाही का होता है तो उन्हें काम के होने की समय सीमा बतानी होती है कि अमुक काम कब तक पूरा कर लिया जाएगा। जहां भी ज़रूरत होती है पार्षद अपने कोटे से वहीं का वहीं फंड भी आबंटित करते हैं।
  • पार्षद के कोटे का फंड और नगर निगम के अन्य फंड किन किन कामों पर खर्च किए जाएं इनका फैसला भी मोहल्ला सभा में किया जाता है।
  • गरीबों के लिए बनी विभिन्न सरकारी योजनाओं जैसे व्रद्धावस्था, विधवा पेंशन आदि किसको मिले और कौन सबसे गरीब है, ये निर्णय भी सीधे जनता द्वारा मोहल्ला सभा में जनता द्वारा लिए जाते हैं।
  • सभी निर्णय आम सहमति या बहुमत के आधार पर लिए जाते हैं।
  • पार्षदों, ने यह भी व्यवस्था की है कि सम्बंधित कार्य के लिए ठेकेदार को भुगतान जनता द्वारा कार्य के प्रति संतुष्टि ज़ाहिर किए जाने पर ही होगा।
  • मोहल्ला सभा बैठक का मूल सिद्धांत है कि – किसी इलाके में क्या काम होगा यह उस इलाके के लोग तय करेंगे और उनके प्रतिनिधि (पार्षद), अपने अधिकार क्षेत्र, कानून और संसाधनों की उपलब्ध्ता के ध्यान में रखते हुए, केवल उनकी इच्छा का पालन करेंगे।
  • बैठक के बाद, मोहल्ला सभा द्वारा लिए गए फैसलों की जानकारी लिखित रूप से मोहल्ले के प्रत्येक घर में भेज दी जाती है।
  • हर मोहल्ले में ये बैठकें, दो महीने में कम कम एक बार होंती हैं तथा इनमें पिछली बैठकों में लिए गए फैसलों पर की गई कार्रवाई पर भी चर्चा होती है।

मोहल्ला सभा, (त्रिलोकपुरी, दिल्ली)

अभी तक का अनुभव

  • लोगों की मांगे बहुत छोटी छोटी और कई बार तो बेहद मामूली होती हैं.। सरकार जनता के करोड़ों रुपए मनमाए तरीके से खर्च कर देती है इसीलिए जनता भी असंतुष्ट रहती है। लेकिन जब लोग फैसले लेते हैं तो उनकी सभी मांगें अपेक्षाकृत कम फंड से भी पूरी की जा सकती हैं। उदाहरण के लिए त्रिलोकपुरी इलाके में पहली मोहल्ला सभा में लोगों की सभी मांगें महज़ 14 लाख के बजट की थीं। लोगों की मांग उपलब्ध् फंड से अधिक होने पर जनता के सामने स्थिति स्पष्ट की जाती है तब लोग आपस में चर्चा कर तय करते हैं कि उपलब्ध् बजट को बेहतरीन तरीके से कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है। आवश्यकता पड़ने पर प्राथमिकता तय करने के लिए मोहल्ला सभा में वोटिंग भी कराई जाती है।
  • अधिकतर पार्षदों की शिकायत रहती है कि स्थानीय अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते। इससे पार्षदों की छवि खराब होती है लेकिन जिन वार्डों में मोहल्ला सभाएं होनी शुरू हुई हैं वहां स्थितियां बदली हैं। देखने में आया है कि कर्मचारियों ने अब अपना काम अधिक मुस्तैदी से करना शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिए एक बैठक में एक व्यक्ति ने बताया कि तीन साल से वह अपने मोहल्ले की एक नाली में सफाई न होने की शिकायत कर रहा है। पार्षद ने भी बताया कि वह हर बार सफाई नायक को कह देते हैं। बैठक में मौजूद सफाई नायक ने मोहल्ला सभा में सबके सामने कहा कि वह तीन दिन में सफाई करा देगा। लोगों ने सफाई नायक से पूछा कि अगर तीन दिन में सफाई नहीं हुई तो उसके खिलाफ क्या कार्रवाई की जानी चाहिए? जवाब में खुद सफाई नायक ने कहा जनता जो भी सजा देगी वह उसे भुगतने के लिए तैयार है। नतीज़ा यह निकला कि तीन दिन में ही नाली की सफाई करा दी गई।
  • यह देखना काफी दिलचस्प है कि मोहल्ला सभाओं में किस तरह लोग व्रद्धावस्था, विधवा, विकलांग अवस्था पेंशन आदि के बारे में निर्णय लेते हैं। ये सभी योजनाएं सरकार गरीब लोगों की सामाजिक सुरक्षा के लिए बनाती है। अभी तक इन योजनाओं का लाभ पार्षद के नज़दीकी, उनके रिश्तेदार या पार्टी से जुड़े लोगों को ही मिल पाता था। अब इन योजनाओं के लाभार्थियों के नाम खुली बैठक में चर्चा के बाद तय किए जाते हैं। सोनिया विहार वार्ड के तहत आने वाले बदरपुर खादर गांव के लोग बहुत गरीब हैं। जब इस गांव में मोहल्ला सभा की बैठक हुई तो करीब 100 लोग इसमें शामिल हुए। जब बैठक के दौरान व्रद्धावस्था, विधवा, विकलांग पेंशन आदि की स्कीमों के लाभार्थी चयनित करने की बारी आई तो लोगों ने आपस में सलाह मशविरा करके आठ महिलाओं के नाम सुझाए, जो गरीब थीं। पार्षद ने कहा कि अभी 42 और लोगों को पेंशन दी जा सकती है, कुछ और नाम बताइए तो लोगों ने एकमत से कहा कि उनके गांव में यही आठ सबसे गरीब हैं जिन्हें इस योजना का लाभ मिलना चाहिए। उन लोगों की इमानदारी और न्यायप्रियता का यह दृश्य देखकर कई लोगों की आंखों में आंसू आ गए। यहां यह भी समझ में आया कि गरीबों के लिए बनी योजनाओं का चयन अगर इस तरह सार्वजनिक बैठकों में किया जाएगा तो कोई भी ऐसा व्यक्ति जो गरीब नहीं है खुद को गरीब नहीं कहेगा। यह उसके सम्मान के खिलाफ होगा।
  • इन मोहल्ला सभाओं के चलते राजनेता लगातार काम कर रहे हैं। पहले उन्हें केवल पांच साल में एक बार जनता के सामने जवाब देना होता था। अब तो उन्हें हर महीने जनता के सामने जाना होता है।
  • हमारे देश में नौकरशाही से सीधे सवाल करने के लिए कोई मंच नहीं है। उनका कामकाज एकदम मनमर्जी और गैरज़िम्मेदाराना तरीके से चलता है। मोहल्ला सभा एक ऐसे मंच के रूप में सामने आ रही हैं जहां लोग उनसे सीधे सवाल कर सकें। वास्तव में, मोहल्ला सभा बैठओं ने लोगों और उनके जनप्रतिनिधियों को एक साथ ला दिया है। अब बारी गैर निर्वाचित पदाधिकारियों यानि सरकारी कर्मचारियों की है। उनके पास भी अब जनता के साथ आने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो अकेले पड़ जाएंगे।

No comments:

Post a Comment