स्वराज अभियान से जुड़ने का मतलब क्या है?
- स्वराज अभियान से जुड़ने का मतलब है कि स्वराज की अवधारणा को समझना और फिर अपने मोहल्ले या गांव में इस तरह की व्यवस्था की स्थापना के काम में जुटना।
- इसके लिए किसी शहरी मोहल्ले या गांव के 15-20 युवा शुरुआत कर सकते हैं। ये युवा पहले तो खुद इस अवधरणा कि ठीक से समझें और तब अपने मोहल्ले में इस बारे में अन्य लोगों से बातचीत करें ताकि मोहल्ले या गांव के अधिक से अधिक लोग इस संबन्ध् में जान सकें।
- ध्यान रहे कि इस क्रम में राजनीति दो स्पष्ट ध्रवों में बंटेगी। एक वो जो स्वराज के पक्ष में हैं जो लोगों के तंत्र में विश्वास रखते हैं, वे चाहेंगे कि सत्ता सीधे जनता के हाथ में हो। दूसरे वे जो यह मानते हैं कि लोग फैसले नहीं ले सकते, फैसला लेने के लिए तो कोई प्रतिनिधि चाहिए ही।
- जब अपने गांव और मोहल्ले में बात करना शुरू करेंगे तो पहली श्रेणी के लोगों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ेगी। संख्या बढ़ेगी तो गांव के प्रधान या मोहल्ले के निगम पार्षद को उससे संबिन्ध्त सारे फैसले हर महीने मोहल्ला सभाओं में करने के लिए तैयार किया जा सकेगा।
- अभियान का मकसद है कि अधिक से अधिक शहरों और गांवों में सारे फैसले मोहल्ला सभाओं और ग्राम सभाओं के माध्यम से हों।
- जहां-जहां यह संभव हो सके और उससे गांव के माहौल व विकास में आए बदलाव को बाकी जगह बताया जाए ताकि यही प्रक्रिया वहां भी शुरू हो सके।
हमें ये ध्यान रखना होगा कि सकारात्मक परिणाम आने में वक्त लगेगा जैसा कि ब्राजील का अनुभव हमें बताता है, ऐसा होने में कई-कई साल का भी समय लग सकता है। शुरुआत में लोग गलती भी करेंगे। लेकिन फिर वो अपनी इसी गलती से सीखेंगे भी। और इसी तरह एक लोकतंत्र परिपक्व और विकसित भी होता है। लेकिन एक बार लोगों को अपनी अभिव्यक्ति और इस व्यवस्था का महत्व समझ में आ जाए तो फिर इनका भला तो होगा ही, उस राजनीतिक दलों को भी इसमें फायदा नज़र आएगा और वे इस व्यवस्था को कानूनी जामा पहनाने में भी अपना भला देखेंगे।
इस अभियान के संबन्ध् में किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए संपर्क कर सकते हैं -
ईमेल: swaraj.abhiyan@gmail.com
फोन: 09718255455
इस ब्लॉग की सख्त जरूरत थी . ऐसा ही कुछ मैं भी सोच रहा था . सौभाग्य से उसके पहले ही आपका ब्लॉग मिल गया है . शायद मैं इतना अच्छा और बेहतर न कर पाता . कम से कम मेहनत करने से बच गया:)
ReplyDeleteऔर सामग्री ! बहुत कुछ समेटे है पर समर शेष है !
चौथाई सदी से ज्यादा के ९० % समय आत्मनिश्कासन के बावजूद , अब तक कम से कम १० % वक्त तो अपने गाओं के साथ ही रहा हूँ . अब तो .........सौभाग्य है काफी वक्त वहीं गुजरेगा .
इसलिए आपसे जुड़ कर कुछ सार्थकता ही होगी , आनंद तो होगा ही .
मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के एक गाँव मरुआन , पोस्ट -दान्दूपुर ( मुफरिद ) ,जिला -प्रतापगढ़ में हुआ . प्राथमिक पढ़ाई गाँव से १.५ किलोमीटर दूर गाँव कर्माजीतपुर के प्राथमिक स्कूल से पूरी की .तत्पश्चात मुंबई से सेकंडरी तथा मुंबई विश्वविद्यालय से इन्तर्मिदिअत प्रथम व उत्तर प्रदेश बोर्ड से फाईनल , इलाहबाद के इन्तर्मिदिअत कालेज से पूरी की . विज्ञानं प्रथम वर्ष इलाहबाद विश्वविद्यालय से पूरा करने के बाद राष्ट्रीय तकनालाजी संस्थान जमशेदपुर में प्रवेश मिलने पर इलेक्ट्रिकल इन्जीनीरिंग में स्नातक हुआ. कुछ वर्ष भारत सरकार में सेवा कर अमेरिका को पलायन . पलायन के मतलब बाद में कहूँगा . वहां न्यू योर्क शहर की प्रतियोगी परीक्षा द्वारा , नगर प्रसासनिक सेवा में प्रवेश तथा उसके विभिन्न विभागों में कई पदों पे सेवा रत रहने के बाद २००९ में सेवा से निष्कासन .
कारण ?
लगातार प्रशासन को भ्रष्टाचार , अनियमितताओं तथा सितंबर ११ घटने के बावजूद सुरक्षा तक में धांधली बाजी करते रहने वाले अधिकारीयों तथा ठेकेदारों की आपराधिक सांठ गाँठ सबूतों सहित सूचित करते रहने के तथा व्यक्तिगत प्रताड़ना सहते रहने के बावजूद धूर्त ,रंगभेदी और ऊपर तक भ्रष्ट तथा अकर्मण्य प्रशासन का अँधा और बहरा ही बने रह जाना तथा मेरे ही ऊपर षड्यंत्रपूर्ण झूठे दोषारोपणों का लगातार दबाव . प्रेस और मीडिया में सीधे जा बात बताने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा था .परिणाम : बिना इजाजत प्रेस और मिडिया में सीधे बात करना ' कोड ओव कंडक्ट ' का उल्लंघन और निश्चित निष्काशन . यद्यपि प्रशासन मेरे आरोपों के बारे में उत्तर न दे सका या खंडन ही कर सका ,फिर भी .
यहाँ मेरा मकसद अपनी बहादुरी या त्याग बताना नहीं बस सन्दर्भ के लिए है . ये बताने की वजह यह है की नए शोषक और भ्रष्ट साम्राज्यवाद को बताना तथा उसके खतरों से भारत के गाओं में रहने वालों ( जिसमे भारत के ७०% गरीबों के अधिकांश बसते हैं तथा परिवार रोज बीस रुपये से भी कम की आमदनी पर गुजारा करते हैं ) को आगाह करना है जो एक नए क्षद्म्वाद ' विश्ववाद ' के मुखौटे से नयी ठगी और शोषण का अवतार बन कर आ रही है . सच्चाई ये है की ' इंडिया ' चमक रहा है स्वप्निल है और ' भारत ' भूखा और मजबूर '.
गांधी ' ग्राम स्वराज ' के नहीं नवमुद्रा और नव्शोषण के प्रतीक धन ' नोटों ' के ' ट्रेडमार्क ' से नवाज़ दिए गए हैं . १०० साल पुरानी उनकी ' ग्राम स्वराज ' की परिकल्पना और ' रामराज ' का सपना , जिसके जागने पर अंग्रेज भाग लिए अब ' नव अन्ग्रेजिओं ' के रूप में भारतीय मुखौटा लगा सिंहासन पर चढी बैठी है .स्वराज तो दूर अब ग्रामजन का अस्तित्व ही साम्राज्यवाद की सलीब पर टंगा अपनी धीमी मौत मर रहा है .रोज दर्जनों ,जो इस धीमी मौत को नहीं बर्दास्त कर पा रहे सीधे अपने ही गले में फंदा बाँध खुद को मार डाल रहे हैं . लोकतंत्र के चारों खम्भों तक न सिर्फ उनकी आवाज़ ही नहीं पहुँच रही बल्कि सुन कर भी अपमानजनक ढंग से अनसुना भी किया जा रहा है . एक पूर्ण निर्धारित षड्यंत्र के तहत , एक कठपुतली प्रशासन द्वारा, जिसकी डोरियाँ ८००० मील दूर से संचालित हो रही हैं .
सावधान ग्राम भारत !
अब ग्राम शक्ति जागरण के बिना ' ग्राम स्वराज ' तो दूर ग्रामजन ही नहीं बचेंगे .