स्वास्थ्य व्यवस्था में भी शिक्षा की तरह की ही खामियां हैं जिनके चलते आम आदमी दुखी है। भारत जैसे देश में जहां की आधी से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे है, स्वास्थ्य व्यवस्था को निजी लाभ के लिए कंपनियों के हवाले नहीं किया जा सकता। अच्छी बात ये है कि हमारे पास एक बड़ा सरकारी स्वास्थ्य तंत्र है लेकिन निराशाजनक ये है कि इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और कामचोरी है।
प्राथमिक स्वास्थ्य केद्रों (पीएचसी), दवाखानों आदि में डाक्टर और नर्सें नहीं हैं। इनकी नियुक्ति राज्य स्तर पर होती है। यदि पीएचसी में तत्काल कर्मचारियों की आवश्यकता होती है तो पीएचसी प्रभारी सिर्फ अपने ऊपर के अधिकारियों को लिखित में इसकी सूचना दे सकता है। ऊपर के स्तर तक पहुंचते-पहुंचते ये पत्र नौकरशाहों की मेज पर कहीं खो जाता है। और इस सब का खामियाजा भुगतना पड़ता है आम आदमी को। समाधान यही है कि जरुरत पड़ने पर ग्राम सभा खुद नियुक्ति कर ले। नये कर्मचारी को नियुक्त करने का अधिकार ग्राम सभा के पास होना चाहिए न कि सरपंच के पास जो किसी को नियुक्त करने के बदले घूस ले सकता है। ग्राम सभा नामों के चयन के लिए एक कमेटी बना सकती है। अंतिम निर्णय ग्राम सभा की एक खुली बैठक में लिया जा सकता है। जिला स्तर पर इस तरह का काम जिला पंचायत कर सकती है जो सीधे-सीधे इलाके की ग्राम सभाओं के प्रति जवाबदेह होगी।
इस तरह डॉक्टरों के काम पर न आने और मरीजों के साथ ठीक से व्यवहार न करने की समस्या भी सुलझ जाएगी जब उन्हें पता होगा कि मरीज़ अपनी ग्राम या मोहल्ला सभा की में प्रस्ताव रखकर मेरे खिलाफ कार्रवाई करवा सकता है।
सरकारी अस्पतालों में हमेशा ज़रूरी मशीनों और दवाओं की कमी रहती है। इनकी़ खरीदारी प्राय: राज्य स्तर पर होती है। अगर यह स्थानीय स्तर पर हो और इसके लिए ग्राम सभा के पास फंड हो तो अस्पताल प्रशासन अपनी आवश्यकताओं को लेकर ग्राम सभा की बैठक में जा सकता है। ग्राम सभा चाहे तो फैसला लेने के लिए विशेषज्ञों की सहायता ले सकती है। इससे न सिर्फ लोगों को दवाएं उपलब्ध् हो पाएंगी बल्कि अनावश्यक खर्च होने वाला पैसा भी बचेगा। यदि अचानक कोई महामारी फैलती है तो ग्राम सभा को तत्काल कोई कदम उठाने का अधिकार हो। वर्तमान व्यवस्था में प्रशासन जब तक कोई ठोस कदम उठाए तब तक कई लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं।
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