रात के आठ बज रहे थे। यह वक्त देश के ज्यादातर गांवों की तरह महेन्द्रगढ़ के बेवल गांव के लिए भी खा-पीकर सोने का था। लेकिन उस रात पूरा गांव जाग रहा था। इससे ज्यादा अजीब बात थी कि ज़िले के दो आला अधिकारियों की भी आंखें थकने के बावजूद खुली रहने के लिए मजबूर थी। 13 सितम्बर 2010 की उस रात बेवल गांव में जो कुछ हुआ, उसने पूरे देश में एक नई सुबह की उम्मीद जगा दी है। गांव में हुई इस ऐतिहासिक घटना का गवाह बनकर लौटे विनोद अग्रहरि की रिपोर्ट-
हरियाणा के महेन्द्रगढ़ ज़िला मुख्यालय से क़रीब तीस किलोमीटर दूर स्थित बेवल गांव एक पारंपरिक गांव की सारी ख़ूबियों को समेटे हुए है। एक ऐसा गांव, जहां विकास कागज़ों में तो दौड़ता है मगर गांव की हालत देखकर लगता है कि वह बैलगाड़ी पर सवार है। इलाक़े की बलुई मिट्टी बग़ैर ठीक से पानी पिए गांव का पेट नहीं भरती है। इसके बावजूद गांव की ज्यादातर आबादी के पास खेती पर निर्भर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।